बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय गोयल ने कुछ दिन पहले एक आर्टिकल लिखा था. इस आर्टिकल में उन्होंने पैसा कमाने की होड़ पर सवाल उठाए थे. हमारे एक साथी ने विजय गोयल के इस आर्टिकल में उठाए गए सवालों का जवाब देने की कोशिश की है.

विजय गोयल का एनबीटी में पब्लिश आर्टिकल
विजय गोयल ने अपने आर्टिकल में कहा कि “ज्यादा से ज्यादा धन जुटाने की होड़ में लोगों ने अपना सुख चैन गंवा दिया है.” मैं उनकी बात से सहमत हूं. एक व्यक्ति तीन बार दिल्ली से सांसद रहा चुका है. उन्होंने केंद्र में कुशासन भरे कांग्रेस के कार्यकाल में इतना सुख-चैन गंवाया कि 4 साल में उनकी संपत्ति में करीब 10 गुना बढ़ोतरी हो गई. मैं विजय गोयल जी आपकी बात कर रहा हूं. आपने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा तो निजी संपत्ति 3 करोड़ बताई थी, जब 2013 में राज्यसभा चुनाव लड़ा तो आपके घोषणा पत्र के मुताबिक, आपकी संपत्ति बढ़कर 29 करोड़ के करीब की हो गई थी. आप इतना क्यों कमा रहे हैं?
एक फीसद आबादी के पास देश की 58 फीसद संपत्ति
देश की आबादी का केवल 10 फीसद हिस्सा है जो ज्यादा से ज्यादा धन जुटाने की होड़ में सुख-चैन गंवाया है. बाकी तो बस पेट भरने के लिए सुख-चैन गंवा रहे हैं. विश्व भूखमरी सूचकांक में भारत 119 देशों में 100वें स्थान पर है. हर पांचवा बच्चा कुपोषण का शिकार है. आपने शायद बीजेपी के शासन आने के बाद आर्थिक असमानता पर रिपोर्ट पढ़नी छोड़ दी है. क्रेडिट सुईस की एक रिपोर्ट है. उसके मुताबिक देश की 1 फीसद संभ्रांत आबादी के पास देश की 58 फीसद संपत्ति है. निचले 70 फीसद भारतीयों के पास देश की केवल 7 फीसद संपत्ति है.
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ऑक्सफेम की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में आर्जित संपत्ति का 73 फीसद हिस्सा संभ्रांत एक फीसद भारतीयों के पास गया है. शायद आप सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना के बारे में जानते होंगें. जिसके मुताबिक, 75 फीसद ग्रामीण परिवार 5 हजार रुपये से कम कमाते हैं, 90 फीसद परिवार 10 हजार से कम कमाते हैं. ऐसे में आपका ये कहना कि लोग पैसा कमाने के चक्कर में सुख चैन गंवा रहे हैं, गलत है. ज्यादातर लोग अपना पेट भरने के लिए सुख-चैन गंवा रहे है.
खुद को जिंदा रखने के लिए कमा रहे हैं ज्यादातर लोग
गोयल जी आपने कहा कि लोगों को “कमाने का क्या उदेश्य है, यह नहीं पता और उसके लिए हमने क्या साधन अपनाए हैं, वह भी हमें नहीं पता.” शायद गोयल जी आपको नहीं पता कि आपने पैसा कमाने के लिए कौन-से साधन अपनाए. आम जनता को उसकी कमाई के उदेश्य और साधनों के बारे में सब पता है. मैं मज़दूर हूं. मुझे पता है कि मेरे कमाने का उदेश्य सर्वाइवल है. खुद को जिंदा रखना.
90 फीसद भारतीय जानते हैं कि कमाने का उदेश्य स्कूल, कॉलेज और डॉक्टर की फीस का भुगतान करना है. किसान को पता है उसकी कमाई का साधन उच्च जाति वाले साहूकार का कर्ज उतारकर फसल से हुई कमाई है. मजदूर को उसकी कमाई का साधन पता है. नौकरीपेशा को पता है कि उसने दिन में ओवर टाइम कर कमाई की. सीवरकर्मी को पता है कि उसने मौत से खेलकर पैसा कमाया, जवान को पता है कि बॉर्डर पर खराब दाल खाकर सरकार से सैलरी ली, शायद गोयल जी आपको नहीं पता कि पैसा कमाने के लिए आपने कौन-से साधन अपनाए. जिस दिन आपको अपनी कमाई का साधन पता चल जाए हमें भी बता देना.
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आपने लिखा है कि “इतना कमाकर करेगा क्या आम आदमी. वास्तव में हम क्यों और किसके लिए कमा रहे हैं, यह भी हम नहीं जानते.” क्या आपके हिसाब से पैसा कमाने का अधिकार खास आदमी को ही है? क्या आम आदमी को पैसा कमाने का कोई हक नही? “पैसा कमाकर क्या करेगा आम आदमी” जैसा सवाल आप आदमी से मत पूछिए क्योंकि आम आदमी गरीब है, मध्यमवर्गीय है. वो कमा रहा है जीएसटी के भुगतान के लिए. 100 रुपये के करीब पहुंच चुके पेट्रोल और डीजल के भुगतान के लिए. शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए. ये सवाल आपको खास आदमी से पूछना चाहिए कि वो इतना पैसा क्यों कमाना चाहता है? खास आदमी, खास क्यों बना रहना चाहते हैं? आप भी खास आदमी हैं. आप इतना क्यों कमा रहे हैं?
खास आदमी खास क्यों बने रहना चाहता है?
चलो आप ही बता दीजिएगा. आप खास परिवार से आए हैं. आपके पिता चरती लाल गोयल दिल्ली विधानसभा के स्पीकर थे. उनके पैसे पर आपने एम कॉम की, एलएलबी की. आपके पिता खास आदमी होकर चले गए, आप भी क्यों राजनीति में आकर खास आदमी हो गए? आप मुझे बताइये कि खास आदमी खास क्यों बना रहना चाहता है? वो कभी आम आदमी क्यों नहीं होना चाहता?
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आपने एक और बात कही है “आम आदमी से पूछो तो वह कहता है कि मैं अपने बच्चों के लिए कमा रहा हूं, जो सरासर झूठ है.” आपने बिल्कुल सही कहा. महंगाई बहुत है. आम आदमी बच्चों के लिए कमा ही नहीं पता. आपके जैसे खास आदमी ही बच्चों के लिए कमा पाते हैं. आपका बेटा हवेली धर्मपुरा चलाता है, वो आप ही की कमाई से बनाई होगी या फिर उसने खुद की कमाई से बनाई है?
आपने आम आदमी को सलाह दी है कि “अपने और बच्चों के लिए भी एक सीमा तक ही कमाना जरूरी है. लोग कमाने में लगे हैं लेकिन उसका करेंगे क्या, ये उन्हें नहीं मालूम”( मैं तो बस इतना पूछना चाहता हूं कि आपकी सीमा क्या है? खुद की सीमा क्यों नहीं तय की. आप चौथी बार सांसद बने है, क्या आप सैलरी और सुविधाएं ले रहे है?)
आपको नवभारत टाइम्स में ये आर्टिकल नहीं लिखना चाहिए था क्योंकि ये हिंदी भाषी लोगों का अखबार है, जिनमें ज्यादातर मध्यमवर्गीय होते हैं, गरीब होते हैं. अकूत संपत्ति वाले लोग अंग्रेजी अखबार पढ़ते हैं. आपको टाइम्स ऑफ इंडिया टाइप अंग्रेजीदा अखबार आर्टिकल लिखना चाहिए था और धन्ना-सेठों से सवाल पूछने चाहिए थे.
आपने लिखा है कि “आजकल धन के दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ गई है.” मेरा कहना है कि आपके बेटे ने जो बिल्डिंग बनाई है जिसमें मुगल काल की कला दिखाने का दावा है क्या वो दिखावे के लिए नहीं है)
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आपने एक बेहद अच्छी बात की है कि “कई लोगों के लालच की कोई सीमा नहीं होती.” मेरा मानना है कि ये बिल्कुल सही बात है. आपके पिता दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष रहे थे, लेकिन सत्ता के लालच ने आपको ऐसा जकड़ा कि आप राजनीति में आ गए. संतान के लालच की पूर्ति के लिए आपने भी कुछ कम नहीं की. आपकी बेटी को श्रीराम कालेज ऑफ कॉमर्स में इसलिए दाखिला मिला क्योंकि आप कॉलेज की गवर्निग बॉडी के सदस्य थे. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक स्टोरी के मुताबिक, श्रीराम कालेज ऑफ कॉमर्स में 92 फीसद कट ऑफ था, लेकिन आपकी बेटी को केवल 87.55 फीसद के साथ ही दाखिला मिल गया था. सच में लोगों के लालच की कोई सीमा नहीं होती.
आपने शादी और मकान पर फजूलखर्ची की बात की है. साथ में लोगों के एक के बाद एक प्लॉट खरीदने पर सवाल उठाए है, लेकिन सवाल ये है आपके दो बच्चे हैं.. उगर उनकी शादी हुई तो क्या आपने उस पर फिजूलखर्ची की या सादगी से? आपको लोगों के प्लॉट खरीदने पर सवाल उठाने का कोई नैतिक आधार नहीं है क्योंकि आपने चुनावी घोषणा पत्र में बताया है कि आपके पास तीन घर है. दो आपकी पत्नी के नाम पर हैं.
खुद खोजिये अपने सवालों के जवाब
आपने भारत में भ्रष्टाचार पर एक टिप्पणी की है कि “समझ में नहीं आता कि जिन नेताओं, नौकरशाहों, न्यायधीशों या किन्हीं और ने कथित तौर पर अकूत संपत्ति भ्रष्टाचार करके जोड़ रखी है, वे इसे भोगेंगे कब?” इस सवाल का जबाव देने के लिए आपसे योग्य व्यक्ति कोई नहीं हैं. पहले तो आपकी पार्टी बीजेपी देश की सबसे अमीर पार्टी है. आजकल इलेक्टोरल बांड के जरिए पैसा ले रही होगी. दूसरा, आप ये सवाल माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछ सकते है. उन्होंने कहा था कि वे उदयोगपत्तियों के साथ खड़ा होने से नहीं डरते. उन्हें जरूर पता होगा कि उद्योगपत्ति क्या करते है. तीसरा, आप राज्यसभा के सदस्य हैं, जिसके 90 फीसद सदस्य करोड़पत्ति हैं. आप अपने साथी सदस्यों से पूछ सकते हैं. चौथा, आप सत्ता में हो तो आप नौकरशाहों से बेझिझक ये सवाल पूछ सकते हैं.
आपने एक बेहद चौकाने वाला दावा किया है कि जो जितना अमीर है, उसको उतनी ही बीमारियाँ हैं. इस हिसाब से तो दुनिया में सबसे ज्यादा बीमारियाँ दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति अमेज़न संस्थापक जेफ बेजोस को होनी चाहिए. भारत में सबसे ज्यादा बीमारियाँ देश के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी को होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है. मुकेश अंबानी की सेहत के बारे में ज्यादा जानकारी आप उनके दोस्त नरेंद्र मोदी से ले सकते हैं.
आंकड़े भी कुछ और बताते है. जनरल ऑफ अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन के एक शोध में सामने आया कि अमीर, गरीबों के मुकाबले ज्यादा जीते हैं. शोध में सामने आया था कि संपन्न 1 फीसद अमीर महिलाएं सबसे गरीब 1 फीसद महिलाओँ से 10 साल ज्यादा जीती हैं. पुरुषों में ये फर्क 15 साल के करीब है.
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विजय गोयल जी, आपको जबाव देते वक्त मैं भाषा की मर्यादा नहीं तोड़ना चाहता. आप जैसे इज्जतदार इंसान को ऐसी बहकी-बहकी बातें नहीं करनी चाहिए. आप संभ्रांत व्यक्ति है. अकूत संपत्ति के मालिक. इसलिए आपको आम आदमी के पैसा कमाने पर सवाल नहीं उठाना चाहिए. अगर आप आम आदमी को ज्ञान बांटना चाहते है पहले आप कुछ करके दिखाए. करोड़ो की संपत्ति और 5 घरों का त्याग कीजिए. फिर आम आदमी आपकी बात मान सकता है.